इमाम ज़ैनुल आबेदीन घर लौट रहे थे। शाम का धुंधलका घिर चुका था। - اردو ناول

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جمعرات, جون 13, 2019

इमाम ज़ैनुल आबेदीन घर लौट रहे थे। शाम का धुंधलका घिर चुका था।

इमाम ज़ैनुल आबेदीन अस (अली इब्ने हुसैन, अल सज्जाद) घर लौट रहे थे। शाम का धुंधलका घिर चुका था। अचानक उन्हें लगा कि कोई पास की झाड़ियों में छिपने की कोशिश कर रहा है।
सामने आओ, उन्होंने आवाज़ दी
एक घबराया हुआ, घायल शख़्स बाहर निकला।
घबराओं मत, मेरे पास पानी है पहले पानी पियो, उन्होंने कहा
जी रहने दीजिए, मुझे जाना है
तुम मैदाने जंग से जान बचाकर भागे दिखते हो। दुश्मन पीछे लगे होंगे। तुम मेरे साथ चलो। खाना खाकर आराम करो। जब सही समझो तब जाना, इमाम ने कहा
उस शख़्स ने हज़ार बहाने किए मगर इमाम ने उसकी एक न सुनी। घर ला कर खाना खिलाया, आराम करने को कहा और इबादत में मशग़ूल हो गए। इस शख़्स की आंखो में मगर नींद न थी। मौत के मुंह से भागा और यहां फंस गया। पीछे से दुश्मन भी आते होंगे। इससे तो छिपने के बजाय शाम ही भाग जाता। हज़ार ख़्याल उसके ज़हन में आ और जा रहे थे। आख़िर उसने भाग निकलने का फैसला किया। छिपकर निकलना ही चाहता था कि आवाज़ आई सनान, कहां जा रहे हो? सुबह तक तो इंतज़ार करो। शख़्स और घबरा गया।
आपने मुझे पहचान लिया?
हमने तो उसी वक़्त पहचान लिया था सनान जब तुम मिले थे
आप जानते हैं मैं कौन हूं?
हां। तुम मेरे भाई अकबर के क़ातिल हो। तुमने कर्बला में मेरे बाबा को नेज़ा मारकर घायल किया था। तुम मेरे तमाम भूखे-प्यासे अज़ीज़ों के क़त्ल मे शामिल थे सनान इब्ने अनस।
फिर भी आपने मुझे पानी दिया, खाना खिलाया और पनाह दी? आपने मुझे क़त्ल क्यों नहीं किया?
तुम मेरी पनाह में थे, मैं तुम्हारा क़त्ल कैसे करता?
लेकिन मैंने कर्बला में ये सब नहीं सोचा...
वो तुम्हारा ज़र्फ था सनान ये हमारा ज़र्फ है। तुम घायल, निहत्थे, भूखे-प्यासे, हैरान-परेशान जान बचाने के लिए भटक रहे हो। हम ऐसे इंसान का क़त्ल नहीं करते। चाहे वो बदतरीन दुश्मन ही क्यों न हो। हम वारिसे रसूल (सअ) हैं। हम तुम जैसे नहीं। जाओ तुम्हारे गुनाहों का हिसाब अल्लाह पर छोड़ा।


#MafiKeExample

#JaiseIdleWaisiUmmat

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