मुहब्बत क्या है?
कल मुझसे किसी बुजुर्ग ने पूछा कि साहब मुहब्बत क्या है?
तो मैं घबरा गया कि मुहब्बत की किस तरह तशरीह करूं , कहीं मुझसे बेअदबी ना हो जाये।
तो मैं ये सोच ही रहा था कि अचानक पूछने वाले साहब ने कहा , "मियां सोचते क्या हो??
क्या तुम ने कभी मुहब्बत नहीं की?
क्या मुहब्बत से इतने बेख़बर हो?
मैं ने धीमे लहजे में कहा जनाब मुहब्बत एक नशा है जो करने के बाद आशिक़ के होश ख़त्म कर देता है,मुहब्बत ला-महदूद है जिसकी कोई हद मुक़र्रर नहीं जो कभी ख़त्म नहीं होती।
मुहब्बत के मरीज़ों की शिफा सिर्फ और सिर्फ दीदार-ए-यार में है।
मुहब्बत अगर माँ से हो तो राहे जन्नत
मुहब्बत अगर बाप से हो तो शफक़त
मुहब्बत अगर बहन से हो तो सच्चा प्यार
मुहब्बत अगर शरीके हयात से हो तो राहत
पूछने वाले बुज़ुर्ग कहने लगे कि अगर
मुहब्बत अल्लाह अज़्ज़-ओ-जल से हो तो?
मैं ने कहा
अगर मुहब्बत अल्लाह अज़्ज़-ओ-जल से हो तो कामयाबी ओ कामरानी।
तो इतने में पूछने वाले बुज़ुर्ग ने कहा मियां अगर मुहब्बत के मुताल्लिक़ जानना चाहते हो आज से चौदह सौ साल पीछे नज़र दौड़ाओ और याद करो वो रात जब एक शख़्सص रात की तारीकी में जब हर तरफ सन्नाटा और अंधेरा था तो सजदे में रो रो कर गिड़गिड़ा गिड़गिड़ा कर एक ही फरियाद कर रहा था
"ऐ अल्लाह मेरी उम्मत को बख़्श दे, ऐ अल्लाह मेरी उम्मत को बख़्श दे"
रूह तड़प उठी और बदन कांप गया जैसे किसी ने झिंझोड़ कर कहा हो,
देख नादान ये है #मुहब्बत
صل اللہ علیہ وسلم
कल मुझसे किसी बुजुर्ग ने पूछा कि साहब मुहब्बत क्या है?
तो मैं घबरा गया कि मुहब्बत की किस तरह तशरीह करूं , कहीं मुझसे बेअदबी ना हो जाये।
तो मैं ये सोच ही रहा था कि अचानक पूछने वाले साहब ने कहा , "मियां सोचते क्या हो??
क्या तुम ने कभी मुहब्बत नहीं की?
क्या मुहब्बत से इतने बेख़बर हो?
मैं ने धीमे लहजे में कहा जनाब मुहब्बत एक नशा है जो करने के बाद आशिक़ के होश ख़त्म कर देता है,मुहब्बत ला-महदूद है जिसकी कोई हद मुक़र्रर नहीं जो कभी ख़त्म नहीं होती।
मुहब्बत के मरीज़ों की शिफा सिर्फ और सिर्फ दीदार-ए-यार में है।
मुहब्बत अगर माँ से हो तो राहे जन्नत
मुहब्बत अगर बाप से हो तो शफक़त
मुहब्बत अगर बहन से हो तो सच्चा प्यार
मुहब्बत अगर शरीके हयात से हो तो राहत
पूछने वाले बुज़ुर्ग कहने लगे कि अगर
मुहब्बत अल्लाह अज़्ज़-ओ-जल से हो तो?
मैं ने कहा
अगर मुहब्बत अल्लाह अज़्ज़-ओ-जल से हो तो कामयाबी ओ कामरानी।
तो इतने में पूछने वाले बुज़ुर्ग ने कहा मियां अगर मुहब्बत के मुताल्लिक़ जानना चाहते हो आज से चौदह सौ साल पीछे नज़र दौड़ाओ और याद करो वो रात जब एक शख़्सص रात की तारीकी में जब हर तरफ सन्नाटा और अंधेरा था तो सजदे में रो रो कर गिड़गिड़ा गिड़गिड़ा कर एक ही फरियाद कर रहा था
"ऐ अल्लाह मेरी उम्मत को बख़्श दे, ऐ अल्लाह मेरी उम्मत को बख़्श दे"
रूह तड़प उठी और बदन कांप गया जैसे किसी ने झिंझोड़ कर कहा हो,
देख नादान ये है #मुहब्बत
صل اللہ علیہ وسلم
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