क़रीबी रिश्ते जिंसी दरिंदे क्यों बन जाते हैं ?
क्यों आज की बच्चियां अपने क़रीबी रिश्तो से भी महफूज नहीं?
माहौल या समाज में यह बिगाड़ क्यों पैदा हो रहा है ?
बच्चियां जाएं तो कहां जाएं ?
इन सवालों के पैदा होने की वजह के पीछे कुछ कारण व वाकियात है ।
मेरी यह सोच तब तक थी जब तक मेरी मां ने अपने मोहल्ले की औरतों को नमाज़ और सूरतें सिखाने और बच्चियों को क़ुरान पढ़ाने की शुरुआत नहीं कि थी औरतों की आमद शुरू हुई और अम्मी को अपना हमदर्द समझकर दिल के फफोले फुटने लगे ,उनके घरों की ऐसी भयानक कहानियां सुनने को मिली की वालदा सकते में आ जाती और तमाम दिन परेशान और गमज़दा रहती
कई औरतों के मुताबिक उनके शौहर उन्हें कई बार तलाक दे चुके हैं मगर जाने नहीं देते वह खुद भी इतनी हिम्मत जुटा नहीं पातीं के अपने बच्चे और घर बार छोड़कर बे आसरा हो जाएं इस हराम की जिंदगी का कोई जवाज़ नहीं अल्लाह ताला अपने खौफ़ से गुनाह से बचने वालों के लिए नए-नए रास्ते खोल दिया करता है
नतीजतन ख़ामोशी से हराम कारी की जिंदगी बसर कर रही हैं कुछ के मुताबिक वह शामिल खानदानी निज़ाम में रह रही हैं और कभी उनकी बच्ची किसी रिश्तेदार के हत्ते चढ़ गई या कभी चाचा , ताया उनसे छेड़छाड़ करते हैं और शौहर को अपने भाई पर पूरा भरोसा है तो उसे बताने की हिम्मत नहीं ,और उनकी सर्दियां , गर्मियां रातों को बच्चियों की चौकीदारी में गुज़रती हैं जबकि कुछ के मुताबिक बच्चियों का बाप ही गंदी नजर रखता है
सवाल यह है कि हमारा मुआशरा इस रास्ते पर क्यों जा रहा है और इस सूरत-ए-हाल से बचने का तरीका क्या है ।
हदीस का मतलब है कि " जब तुम में हया न रहे तो जो चाहे करो " और इंटरनेट मीडिया इस वक्त हमारे घरों की हया खत्म करके बेटियों और बाप ,बहनों और भाइयों चाचा और भतीजीयों, मामु और भांजी को एक साथ बिठाकर अख़लाक बिगाड़ने वाले ड्रामे और फिल्में दिखाने में कामयाब हो चुका है ।
कुछ अरसा पहले जस्टिस सईदुज्ज़मा सिद्दीकी के एक बयान पर काफी ले दे हुई और मज़ाक उड़ाया गया के बाप और बेटी का एक कमरे में तन्हा बैठना इस्लामी एतबार से दुरुस्त नहीं जबकि यह बात हकीकत पर मबनी है मैं यह नहीं कहता कि हमारे समाज का हर बाप जिंसी दरिंदा होता है मगर इस सच्चाई से भी इनकार नहीं के जब कुछ ज़हनी व जिनसी बीमार मर्दो पर शहवत का गलबा होता है तब वह बाप ,भाई ,चाचा या मामू नहीं रहते ।
और शैतान के वार से बड़े-बड़े आबिद नहीं बच सकते तो हम क्या हैं ।
मेरी ख़ाला के घर एक डॉक्टर आती है एक बार मेरी मौजूदगी में आई और बातों-बातों में ख़ाला को कोड वर्ड्स में कहने लगी के इस माह मैंने तीन केस " खराब" किए जिनमें से एक..... दूसरा..... और तीसरा...... एक.... का था (नेहायत क़रीबी रिश्तेदार )
यह भी सच है कि हमारे कम उम्र लड़कों और घर के मर्दों में हेजान (उत्तेजना) सबसे पहले अपने घर की महिलाओं के न मुनासिब लिबास देखकर पैदा होती है।
मांएं, बेटियां और बहने गहरे गले, आधी आस्तीनों और छोटे चाकों वाली कमीजों के साथ चुस्त पाजामे पहनकर बिना दुपट्टे के घर मैं फिरंगी तो शैतान को अपना वार करने का भरपूर मौका मिलेगा ।
इसलिए इस्लाम ने औरत को सीना छुपाने और ओढ़नी डालने का हुक्म दिया है ,घर का माहौल मां पाकिज़ा बनाएगी तो औलाद हया दार होगी हया अपने साथ अल्लाह की ओर से अनवार व बरकात लाज़मी लाती है वरना जो तबियत मीडिया हमारे घरों की कर चुका है उसके यही नताइजे देखने को मिलेंगे ।
ऐसे समाज में जहां शादी की उम्र 28 - 30 साल हो वहां 14 साल का एक कम उम्र लड़का घर की औरतों के हुलयों से भड़क कर मुश्तरका खानदानी निजाम का फायदा क्यों कर ना उठाएगा शादी की उम्र होने पर शादी ना करना ही एक फसाद है। दुनियादार घरों में प्राइवेसी का तसव्वुर नहीं वहां ऐसे वाक्यात हो जाते हैं और ढांप दिए जाते हैं, क्योंकि जनानखाना और मरदान खाना अब हमारे नजदीक आउटडेटेड हो चुका है ,
और एक या दो कमरों में जिन्दगी जी रहे खानदान प्राइवेसी के मतलब से भी वाकिफ नही,
आधुनिकता की दौड़ में हया से गफलत बरतकर जो नतीजे सामने आ रहे हैं उनको न रोका गया तो हालत और भी भयानक होते जाएंगे
इस सिलसिले में कुछ मशवरे पेशे खिदमत हैं
बच्चियां और मांएं सातिर लिबास इस्तेमाल करें ,फैशन करें मगर सतर ढांपने के एहतियात के साथ फैशन सिर्फ हाफ सिलीवस, गहरे गलों या चुस्त पाजामों का नाम नहीं .
रिश्तों और उनके सम्मान से बच्चियों ,बच्चों और बड़ों को अवगत होने चाहिए ।
बच्चियां बालिग होने के बाद बाप को न दबाए न ही कोई और जिस्मानी खिदमत करें या लेटें , जिस्मानी खिदमत बेटे या माएं करें और अगर ज्यादा जरूरत या मजबूरी हो तो इस बारे में गुंजाइश की तफसील व मसाइल के लिए मुफ्ती साहिबान से पता करें।
बेटियां बाप के साथ बैठकर अकेले या सबके साथ TV देखने से परहेज करें और माएं भी अपने 14 -15 साल के बेटों से जिस्मानी कनेक्शन यानी गले लगाने , मालिश कराने या साथ लेट जाने से परहेज करें ,बाप बेटियों के कमरे में दरवाजा खटखटाकर आए या दूर से खकारते हुए आएं ताकि बच्चियां अपना लिबासस दुरुस्त कर ले यही सूरत एक या दो कमरों के घर में इखतैयार की जा सकती है
बाप बच्चियों को सोते से ना जगाएं और यह जिम्मेदारी माएं सरंजाम दें क्योंकि सोते में लिबास बेतरतीब हो सकता है
भाइयों या मेहरम रिश्तो के साथ हंसी मजाक में हाथ मारना ,प्यार में गले लगना या सलाम के लिए हाथ मिलाना सिर्फ ड्रामा फिल्मों की हद तक ही रहने दें
एक इस्लामी समाज में धरों के लिए इसकी कोई गुंजाइश नहीं
मगर अब यह देखने में आ रहा है कि बहनोईयों या कजंस से हाथ मिलाना और शादी ब्याह में उनके या मेहरम रिश्तो के साथ नाचना गाना बुरा नहीं समझा जाता तभी शैतान अपने दांव पेंच आज़मा लेता है।
लाड़ में चचाओं के गले झुल जाना ,मामू से बगल गीर होना, बाप भाइयों के साथ बैठकर ड्रामे देखना जिनकी कहानी ही नाजायज़ माशक़ो से शुरु होकर नाजायज बच्चों के जन्म से आगे बढ़ती है और हमल व जचगी के मनाज़िर आम सी बात हैं इन सब से बचें
बच्चियों को सिखाए कि वह खुद को जितना ढक कर रखेंगी और रिजर्व रहेंगी उतना ही उनके ईमान , दिल व चेहरे के नूर में इजाफा होगा और किसी को उनसे छेड़छाड़ की जुरत ना होगी।
याद रहे यह सब कदम आखिरी नहीं हैं बल के एहतयाति तदाबीर हैं। (उर्दू से हिंदी अनुवाद)
ہفتہ, اگست 25, 2018

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